भोर में ही छठ घाटों पर उमड़े श्रद्धालु, उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ हुआ महाव्रत का पारण

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भोर में ही छठ घाटों पर उमड़े श्रद्धालु, उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ हुआ महाव्रत का पारण

बस्ती। उगी हो सुरुज देव भोर भिनसहरवां, अरघ की बेरिया पूजन की बेरिया हो… और करीं क्षमा छठीं मइया भूलचूक गलती हमार… जैसे छठ गीतों से गुंजायमान वातावरण के बीच शनिवार को व्रतियों ने उगते सूर्य को अर्घ्य दिया। परिवार और संतान की सुख समृद्धि की कामना के साथ छठ मइया से कोरोना से मुक्ति दिलाने की भी प्रार्थना की गई।

लाउडस्पीकर पर बजते छठ गीतों बीच सरयू, कुआनो नदी से लेकर जलाशयों पर बने छठ घाटों पर सुबह से ही व्रतीमहिलाओं का परिवार के साथ आने का सिलसिला शुरू हो गया था। नदी व जलाशय में घुटने भर पानी में खड़ी होकर महिलाइन सूर्योदय का इंतजार करने लगीं। सूर्य के उगते ही महिलाओं ने अर्घ्य दिया और छठी मइया के प्रतीक सुसुबिता पर प्रसाद चढ़ाकर सिंदूर लगाया। नाक से लेकर मांग तक सिंदूर लगाने के साथ घाट से घर वापसी आईं। घर और मुहल्ले में प्रसाद वितरण के साथ व्रतियों ने 36 घंटे निर्जला व्रत का पारण किया।

मास्क के साथ हुआ सुरक्षा का इंतजाम
व्रतियों में पूजन के साथ ही सुरक्षा को लेकर संजीदगी भी नजर आई। अधिकतर महिलाएं मास्क और सैनिटाइजर के साथ घाटें तक पहुंची और पूजन किया। महिलाओं ने बताया कि व्रत कठिन तो था, लेकिन आस्था और समर्पण के भाव ने आसान कर दिया।

अधिकांश महिलाओं ने घरों पर की गई पूजा
कोरोना संक्रमण में चलते प्रशासन ने इस बार महिलाओं से सामूहिक पूजा में शामिल होने से बचने की अपील की थी। इसका असर भी देखने को मिला। तमाम महिलाओं ने सरयू और कुआनो नदी से पवित्र जल मंगा कर भगवान भास्कर को अर्घ्य दिया। इस दौरान भी महिलाओं ने मास्क का प्रयोग किया।

महाभारत काल से हुई थी छठ की शुरुआत
छठ व्रत से जुड़ी अनेक मान्यताएं हैं। नहाय-खाय से शुरू होने वाले छठ पर्व के बारे में कहा जाता है कि इसकी शुरुआत महाभारत काल से ही हो गई थी। एक कथा के अनुसार महाभारत काल में जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए थे तब द्रौपदी ने इस चार दिनों के व्रत को किया था। इस पर्व पर भगवान सूर्य की उपासना की थी और मनोकामना में अपना राजपाट वापस मांगा था। इसके साथ ही एक और मान्यता प्रचलित है कि इस छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल में कर्ण ने की थी। कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे और वे पानी में घंटों खड़े रहकर सूर्य की उपासना किया करते थे, जिससे प्रसन्न होकर भगवान सूर्य ने उन्हें महान योद्धा बनने का आशीर्वाद दिया था। एक मान्यता के अनुसार भगवान राम और माता सीता ने रावण वध के बाद कार्तिक शुक्ल षष्ठी को उपवास रखा और सूर्यदेव की पूजा आराधना की और सप्तमी को उगते सूर्य की पूजा की आशीर्वाद प्राप्त किया। कहा जाता है तभी से छठ मनाने की ये परंपरा चली आ रही है। इस मान्यता के अनुसार छठ देवी सूर्य देव की बहन हैं और उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए भगवान सूर्य की पूजा की जाती है। व्रत करने वाले मां गंगा और यमुना या किसी नदी या जलाशयों के किनारे आराधना करते हैं। इस पर्व में स्वच्छता और शुद्धता का सबसे जाय्दा ख्याल रखा जाता है।

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