यूपी में नाराज शिक्षामित्र, अनुदेशक भी तो नहीं बीजेपी के हार का कारण..?

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यूपी में नाराज शिक्षामित्र, अनुदेशक भी तो नहीं बीजेपी के हार का कारण..?

Up Shiksha Mitra News 2024 || समूचे देश मे हुए लोक सभा चुनाव 2024 के परिणाम ने सभी को चौंका दिया है। खास कर उत्तर प्रदेश में जिस तरह चुनाव परिणाम आये वह बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व को एक बार सोचने पर मजबूर कर दिया। किन्तु कहा गया है लोकतंत्र में जनता ही जनार्दन होती है, मतदाता किसी पार्टी विशेष का बंधुआ मजदूर नहीं कि जो भी आया वोट लिया और खिसक लिया। बात कुछ भी हो किन्तु जिस तरह से यूपी में चुनाव के नतीजे सामने आए उसे लेकर भारतीय जनता पार्टी को गंभीर होने पड़ेगा और कुछ विशेष मुद्दों पर विशेष ध्यान भी देना होगा अन्यथा की स्थिति में आने वाले विधान सभा चुनाव में और बुरा परिणाम देखना पड़ सकता है। हालांकि यूपी में बीजेपी की हार के बाद कहीं न कहीं भाजपा के लोग हार के कारणों को जानने में जुटे हुए हैं। समीक्षा में अब तक जातिगत समीकरण, अन्दरुनी गुटबाजी, विपक्ष की बेहतर रणनीति आदि के विषय सामने आए हैं। किंतु यूपी में बीजेपी की हार का एक जो प्रमुख कारण है उसे भी भारतीय जनता पार्टी के लोगों को गंभीरता से लेने की जरूरत है।

बात करें तो उत्तर प्रदेश में शिक्षामित्र, अनुदेशक सहित लाखों की संख्या में संविदा शिक्षक जो बेहद ही अलप मानदेय पर कार्य कर रहे हैं और लंबे समय से अपने हक की जायज मांगों को लेकर सड़क से लेकर सदन तक आंदोलन करते रहे किन्तु प्रदेश की योगी सरकार द्वारा इनकी मांगों को अनसुना किया गया। उत्तर प्रदेश के परिषदीय स्कूलों में कार्यरत 1 लाख 37 हजार शिक्षामित्र जिन्हें तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव नें परिषदीय स्कूलों में शिक्षक पद पर समायोजित करते हुए उनका बेतन 40 हजार कर दिया था। योगी सरकार में ही शिक्षामित्रों को 40 हजार से घटाकर 10 हजार रुपये मानदेय कर दिया गया और वह भी महज 11 माह के लिए। साल 2017 में शिक्षामित्रों का समायोजन निरस्त होने के बाद से शिक्षामित्र अपनी मांगों को लेकर आंदोलन करते रहे किन्तु 7 वर्ष में योगी सरकार द्वारा इन शिक्षामित्रों के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए कोई ठोस कदम उठाने की बात छोड़िए इनके मानदेय तक मे भी एक रुपये कि कोई बढ़ोतरी नहीं कि गई। ऐसे में इन शिक्षामित्रों की नाराजगी जायज भी है।

वहीं यूपी के जूनियर स्कूलों में तैनात अनुदेशक शिक्षक लंबे समय से बेहद ही अल्प मानदेय पर बच्चों का भविष्य सवारने का तो कर रहे हैं किंतु उनका खुद का भविष्य अधर में है। अनुदेशकों का मामला किसी से छुपा नहीं है और विगत 7 वर्षों से इन्हें महज कोर्ट कचहरी के चक्कर मे दौड़ाया जा रहा है इनके भी मानदेय को 17 हजार से घटाकर 9 हजार कर दिया गया है। इसे दुर्भाग्य कहें या संयोग उत्तर प्रदेश के अलावा कोई ऐसा प्रान्त नहीं है जहां किसी भी कर्मचारी के बेतन या मानदेय को बढ़ाने के बजाय घटा दिया गया हो। ऐसे में कहीं न कहीं इस लोक सभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की यूपी में हार का यह भी प्रमुख कारण रहा है।

अच्छा हो कि भारतीय जनता पार्टी के लोग यूपी में इस प्रमुख मुद्दों पर भी प्रमुखता से विचार करे अन्यथा की स्थिति में आने वाले विधान सभा चुनाव में भी भाजपा को इन मानदेय शिक्षकों के अनदेखी का प्रभाव दिखेगा और परिणाम बेहद ही चौंकाने वाले ही देखने को मिलेंगे।

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