श्रमिकों को रास आने लगा है गांव

बस्ती। इसे डर कहें या पारिवारिक दायित्व निभाने की मज़बूरी कोरोना वायरस की तबाही ने मजदूरों के परदेस जाने की राह रोक दी है। वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के भय से दिल्ली, कोलकाता, मुम्बई, गोवा, दीप, दमन, पंजाब, गुजरात आदि शहरों में नौकरी पर जाने को सहजता से तैयार नहीं हो पा रहे हैं। लगभग हर श्रमिक गांव पर ही रहकर गुजर-बसर करने की फिराक में है। मजबूर प्रवासी मजदूरों ने रोजी-रोटी की तलाश शुरू कर दी है। अच्छा पैसा कमाने वाले कुछ मजदूर शहर में जाने का मन बना भी रहे हैं तो कोरोना महामारी की याद आते ही इरादा बदल दे रहे हैं। परिवार की खुशहाली के लिए प्रतिदिन अच्छा पैसा कमाने वाले श्रमिकों को मनरेगा की मजदूरी रास आने लगी है।
कलवारी क्षेत्र के कोरमा गांव निवासी निक्कू शर्मा बताते हैं कि मुंबई में नौकरी कर रहा था। किसी तरह भागकर घर पहुंचा हूं। कोरोना महामारी की तबाही का दृश्य जेहन में कौंध उठता है तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं। घर की माली हालत खराब देख फिलहाल नरेगा में काम कर रहा हूं। बताया कि मुम्बई से फोन द्वारा उसके मालिक बुलावा आ रहा है। लेकिन स्थिति सामान्य होने के बाद ही शहर का रुख करेंगे।
आकाश ओझा बताते हैं कि गुजरात में अच्छी खासी नौकरी कर रहे थे।बड़े पैसे के साथ ही सोसायटी में बढ़िया सम्मान था। लेकिन कोराना ने अचानक ब्रेक सा लगा दिया। घर बैठने के कारण काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है। स्थिति सामान्य होने के बाद ही काम पर लौटेंगे।
श्रमिक राकेश राज ने बताया कि वह मुम्बई में मजदूरी का काम करते थे। लॉकडाउन में भागकर घर आ गए थे। कोरोना के कहर को देखकर परिवार के लोग अब परदेस में जाने से मना कर रहे हैं। हालत मे अभी जरा भी सुधार नहीं है। आजीविका चलाने के लिए मजदूरी ही पेशा है सो अब यहीं काम खोजकर काम करेंगे। अभी परदेस जाने को सोचेंगे भी नहीं।
राम जन्म शर्मा बताते हैं कि शहरों की स्थिति ठीक नहीं है। रोजगार के लिए गांव सबसे मुफीद जगह है। कोरोना वायरस का प्रकोप अभी थमा नहीं है। ऐसे में बाहर जाना उचित नहीं होगा। खर्च चलाने के लिए गांव में मनरेगा के कार्य से जुड़ें रहेंगे।
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