इस बार नवरात्र में अश्व पर सवार होकर आई हैं मां: पंडित आत्मा राम
– शारदीय नवरात्र में करें मातृशक्ति का पूजन घर में आएगी लक्ष्मी सहित सुख समृद्धि एवं खुशहाली
शशिसूर्ये गजारूढ़ा शनिभौमे तुरंगमे।
गुरौ शुक्रे चदोलायां बुधे नौका प्रकीर्त्तिता ।।
सोमवार या रविवार को घट स्थापना होने पर मां दुर्गा हाथी पर सवार होकर आती हैं। शनिवार या मंगलवार को नवरात्रि की शुरुआत होने पर देवी का वाहन घोड़ा माना जाता है।
गुरुवार या शुक्रवार को नवरात्र शुरू होने पर देवी डोली में बैठकर आती हैं। बुधवार से नवरात्र शुरू होने पर मां दुर्गा नाव पर सवार होकर आती हैं।
गजे च जलदा देवी क्षत्र भंग स्तुरंगमे।
नोकायां सर्वसिद्धि स्या ढोलायां मरणंधुवम्।।
देवी जब हाथी पर सवार होकर आती है तो पानी ज्यादा बरसता है। घोड़े पर आती हैं तो पड़ोसी देशों से युद्ध की आशंका बढ़ जाती है। देवी नौका पर आती हैं तो सभी की मनोकामनाएं पूरी होती हैं और डोली पर आती हैं तो महामारी का भय बना रहता हैं।
शारदीय नवरात्र का प्रारंभ 17 अक्टूबर दिन शनिवार से हो रहा है। अतः देवी मां इस बार घोड़े से आ रही हैं। घोड़ा युद्ध का प्रतीक माना जाता है। घोड़े पर माता का आगमन शासन और सत्ता के लिए अशुभ माना गया है। इससे सरकार को विरोध का सामना करना पड़ता है और सत्ता परिवर्तन का योग बनता है। इसके साथ ही विजयादशमी 25 अक्टूबर रविवार के दिन है। बता दें कि रविवार के दिन विजयादशमी होने पर माता हाथी पर सवार होकर वापस कैलाश की ओर प्रस्थान करती हैं। माता की विदाई हाथी पर होने से आने वाले वर्ष में खूब वर्षा होगी। इससे अन्न का उत्पादन अच्छा होता है।
शारदीय नवरात्रि में माता दुर्गा के स्वागत की तैयारी नवरात्रि में घर पर मां दुर्गा की फोटो या मूर्ति को स्थापित करने के लिए लकड़ी की चौकी का होना जरूरी है। माता को लाल रंग का कपड़ा बहुत पसंद होता है ऐसे में चौकी पर बिछाने के लिए लाल कपड़ा जरूर होना चाहिए। भूलकर माता की चौकी पर सफेद या काले रंग का कपड़ा नहीं बिछाना चाहिए।नवरात्रि पर कलश स्थापना के साथ माता की पूजा-आराधना का सिलसिला शुरू हो जाता है जो 9 दिनों तक चलता है।
कलश स्थापना में सोने, चांदी य मिट्टी के कलश का प्रयोग किया जा सकता है। कलश स्थापना और मां दुर्गा की पूजा में आम के पत्तों का होना बहुत जरूरी होता है। आम के पत्तों से तोरड़ द्वार बनना चाहिए। नवरात्रि में कलश स्थापना और पूजा में जटा वाला नारियल के साथ पान, सुपारी, रोली, सिंदूर, फूल और फूल माला, कलावा और अक्षत यानि सबूत चावल होना चाहिए। हवन के लिए आम की सूखी लकड़ी, कपूर, सुपारी, घी और मेवा जैसी सामग्री का होना आवश्यक है।
शुभ मुहूर्त
सुबह 06 बजकर 27 मिनट से शुरू होकर 10 बजकर 13 मिनट तक है। इसके बाद अभिजीत मुहूर्त सुबह 11 बजकर 44 मिनट से शुरू होकर 12 बजकर 29 मिनट तक है।
मां शैलपुत्री पूजा घटस्थापना : 17 अक्टूबर प्रतिपदा व्रत
मां ब्रह्मचारिणी पूजा : 18 अक्टूबर द्वितीया
मां चंद्रघंटा पूजा : 19 अक्टूबर तृतीया
मां कुष्मांडा पूजा : 20 अक्टूबर चतुर्थी
मां स्कंदमाता पूजा : 21 अक्टूबर पंचमी
मां कात्यायनी पूजा : 22 अक्टूबर षष्ठमी
मां कालरात्रि पूजा : 23 अक्टूबर सप्तमी
मां महागौरी दुर्गा पूजा : 24 अक्टूबर अष्टमी व्रत व नवमी व्रत
मां सिद्धिदात्री पूजा : 25 अक्टूबर नवरात्र पारणा मूर्ति विसर्जन शमी पूजन नीलकंठ दर्शन
ज्योतिषाचार्य
पं. आत्मा राम पांडेय”काशी ”
संपर्क सूत्र 983821 1412
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