दीन-दुख हरने के साथ पापों का नाश करती हैं मां महागौरी

– शारदीय नवरात्रि के आठवें दिन होती है मां दुर्गा के महागौरी स्वरूप की पूजा
– अष्टमी तिथि को कन्या पूजन और भोजन कराने से प्रसन्न होती है मां महागौरी
बस्ती। शारदीय नवरात्रि की अष्टमी तिथि 24 अक्टूबर यानी शुक्रवार को पड़ रही है। इस दिन मां दुर्गा के महागौरी स्वरूप की पूजा होती है। महागौरी की शक्ति अमोघ और सदा फलदायिनी है। इनकी उपासना से भक्तों के सभी पाप धुल जाते हैं और पापों का नाश होता है। भविष्य में पाप-संताप, दीन-दुःख पास कभी नहीं जाते। वह सभी प्रकार से पवित्र और अक्षय पुण्यों का अधिकारी हो जाता है। अष्टमी के दिन कन्या पूजन करना ज्यादा फलदायी रहता है। मां महागौरी भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं।
ज्योतिषचार्य पंडित आत्माराम पांडेय शास्त्री कहते हैं, भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए मां महागौरी ने कठोर तपस्या की थी। इस दिन मां की पूजा करने से मनचाहे जीवनसाथी की भी मुराद पूरी होती है। मां महागौरी के प्रसन्न होने पर भक्तों को सभी सुख स्वत: ही प्राप्त हो जाते हैं। साथ ही इनकी भक्ति से मन की शांति भी मिलती है। मां की उपासना से तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम की वृद्धि होती है। महागौरी रूप में देवी करूणामयी, स्नेहमयी, शांत और मृदुल दिखती हैं। देवी के इस रूप की प्रार्थना करते हुए देव और ऋषिगण कहते हैं “सर्वमंगल मंग्ल्ये, शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोस्तुते।।” शास्त्रों में कथा यह भी है कि भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए देवी ने कठोर तपस्या की थी। जिससे इनका शरीर काला पड़ जाता है। देवी की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान इन्हें स्वीकार करते हैं और शिव जी इनके शरीर को गंगा-जल से धोते हैं। तब देवी विद्युत के समान अत्यंत कांतिमान गौर वर्ण की हो जाती हैं तथा तभी से इनका नाम गौरी पड़ा।
महागौरी का स्वरूप
मां की कृपा से अलौकिक सिद्धियों की प्राप्ति होती है। देवी महागौरी का अत्यंत गौर वर्ण हैं। इनके वस्त्र और आभूषण सफेद हैं। इनकी चार भुजाएं हैं। महागौरी का वाहन बैल है। देवी के दाहिने ओर के ऊपर वाले हाथ में अभय मुद्रा और नीचे वाले हाथ में त्रिशूल है। बाएं ओर के ऊपर वाले हाथ में डमरू और नीचे वाले हाथ में वर मुद्रा है।
सिंह और बैल हैं मां के वाहन
पौराणिक कथा के अनुसार एक सिंह काफी भूखा था। वह भोजन की तलाश में वहां पहुंचा, जहां देवी उमा तपस्या कर रही होती हैं। देवी को देखकर सिंह की भूख बढ़ गई। परंतु वह देवी के तपस्या से उठने का इंतजार करते हुए वहीं बैठ गया। इस इंतजार में वह काफी कमज़ोर हो गया। देवी जब तप से उठी तो सिंह की दशा देखकर उन्हें उस पर बहुत दया आई और मां ने उसे अपना वाहन बना लिया, क्योंकि एक प्रकार से उसने भी तपस्या की थी। इसलिए देवी गौरी का वाहन बैल और सिंह दोनों ही हैं।
महागौरी की पूजा विधि
ज्योतिषाचार्य के अनुसार अष्टमी के दिन महिलाएं अपने सुहाग के लिए देवी मां को चुनरी भेंट करती हैं। सबसे पहले लकड़ी की चौकी पर या मंदिर में महागौरी की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें। इसके बाद चौकी पर सफेद वस्त्र बिछाकर उस पर महागौरी यंत्र रखें और यंत्र की स्थापना करें। मां सौंदर्य प्रदान करने वाली हैं। हाथ में श्वेत पुष्प लेकर मां का ध्यान करें। महागौरी की पूजा में नारियल, हलवा, पूड़ी और सब्जी का भोग लगाया जाता है। काले चने का प्रसाद विशेष रूप से बनाया जाता है और मां को चढ़ाया जाता है।
पूजन के बाद कराएं कन्या भोजन
पूजन के बाद कन्याओं को भोजन कराने और उनका पूजन करने से मां की विशेष कृपा प्राप्त होती है। महागौरी माता का अन्नपूर्णा स्वरूप भी हैं। इसलिए कन्याओं को भोजन कराने और उनका पूजन-सम्मान करने से धन, वैभव और सुख-शांति की प्राप्ति होती है।
ध्यान
वन्दे वांछित कामार्थे चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा महागौरी यशस्वनीम्॥
पूर्णन्दु निभां गौरी सोमचक्रस्थितां अष्टमं महागौरी त्रिनेत्राम्।
वराभीतिकरां त्रिशूल डमरूधरां महागौरी भजेम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर किंकिणी रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वंदना पल्ल्वाधरां कातं कपोलां त्रैलोक्य मोहनम्।
कमनीया लावण्यां मृणांल चंदनगंधलिप्ताम्॥
स्तोत्र पाठ
सर्वसंकट हंत्री त्वंहि धन ऐश्वर्य प्रदायनीम्।
ज्ञानदा चतुर्वेदमयी महागौरी प्रणमाभ्यहम्॥
सुख शान्तिदात्री धन धान्य प्रदीयनीम्।
डमरूवाद्य प्रिया अद्या महागौरी प्रणमाभ्यहम्॥
त्रैलोक्यमंगल त्वंहि तापत्रय हारिणीम्।
वददं चैतन्यमयी महागौरी प्रणमाम्यहम्॥
पूजा का मंत्र
श्वेते वृषे समारुढ़ा, श्वेताम्बरधरा शुचिः।
महागौरीं शुभं दद्यान्महादेवप्रमोदया।।
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