मरही माता (Marhi Mata) के दर्शन मात्र से श्रद्धालुओं के सारे कष्ट हो जाते हैं दूर

कलवारी, बस्ती। सच्चे दरबार की जय, माता मरही की जय के गूंज से नवरात्रि के पहले दिन से ही माता मरही मंदिर (Mata Marhi Temple) का पूरा प्रांगण भक्ति मय हो जाता है । मां के दरबार में नवरात्रि के पहले दिन से ही श्रद्धालुओं की भीड़ देखने लायक होती है।
बहादुरपुर विकास खण्ड के कुसौरा बाजार से आठ किलोमीटर पूरब सोंधिया घाट के पास स्थित माता मरही के मंदिर (Mata Marhi Temple) पर हर सोमवार व शुक्रवार को बड़ी मात्रा में श्रद्धालुओं की भीड़ होती है। किन्तु नवरात्रि के नौ दिन तो यहाँ मेले जैसा दृश्य होता है। इस मंदिर पर स्थानीय लोगों के साथ साथ अन्य ब्लाकों व जनपदों से लोग दर्शन करने आते हैं। श्रद्धालुओं का कहना है कि मरही माता के दर्शन मात्र से ही सारे कष्ट दूर हो जाते है।
मंदिर के उत्तर तरफ पौराणिक नदी मनोरमा (mythological river manorama) के तट पर स्थित हजारों वर्ष पुराना पीपल का पेड़ मंदिर की पौराणिकता का बयान करता है। मंदिर के पुजारी महन्थ दुर्गा प्रसाद ओझा (Mahanth Durga Prasad Ojha) बताते है कि जहाँ मंदिर बना है यह जमीन हमारे पूर्वजों का था। यहाँ जंगल होने के कारण रात को कौन कहे दिन में किसी की आने की हिम्मत नहीं होती थी। इस जगह दो लोगों की असमय मौत भी हो चुकी थी। माँ ने एक दिन भक्त बालक कोइरी को स्वप्न मे बताया कि मैं मरही माता हूँ जंगल साफ कर मेरा मंदिर बनाकर पूजा कर तो सबका भला होगा। पहले यहाँ मिट्टी की पिंडी बनाकर पूजा होता था। बाद में जिन जिन का भला होता गया उनके सहयोग से विशाल मंदिर खड़ा हो गया। पहले माँ के आदेश से इस मंदिर में सूअर का बच्चा चढ़ता था। लोगो की शिकायत पर नगर के राजा इसे देखने आये। राजा के पूछने पर की ढक्कन के नीचे क्या रखा है तो पुजारी ने बताया कि सरकार मुर्गा है । माँ की कृपा से जब ढक्कन खोला गया तो सूअर की जगह मुर्गा निकला।
मरही माता मंदिर पर स्थानीय लोगों के अलावा अन्य जनपदों से भी लोगों का आना जाना लगा रहता है। यहाँ आकर दर्शन मात्र से मिर्गी, मूर्छा, भूतप्रेत बाधा, ब्रम्हबाधा, नजर आदि माँ के दर्शन मात्र से ठीक हो जाता है। तमाम लोगों को माँ की कृपा से पुत्र की प्राप्ति भी हुई है। इस मंदिर से स्थानीय लोगों के साथ दूरदराज के लोगों की आस्था भी जुड़ी हुई है।