पुरषोत्तम मास (अधिक मास )में दान , पूजा व कुंडली के दोषों का निराकरण करने से दस गुना फल मिलेगा- पं.आत्मा राम

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पुरषोत्तम मास (अधिक मास )में दान , पूजा व कुंडली के दोषों का निराकरण करने से दस गुना फल मिलेगा- पं.आत्मा राम

 

मलमास (पुरुषोत्तम मास) 18 सितंबर से शुरू होकर 16 अक्तूबर तक रहेगा। हर तीन वर्ष में पड़ने वाले इस मास में पूजा, दान, तप और व्रत आदि का दस गुना फल मिलता है। इस मास में कुंडली के दोषों का भी निराकरण होता है।

पं.आत्मा राम जी ने बताया कि अधिकमास में किए गए धार्मिक कार्यों का किसी भी अन्य माह में किए गए पूजा-पाठ से 10 गुना अधिक फल मिलता है। यही वजह है कि श्रद्धालु पूरी श्रद्धा और शक्ति के साथ इस मास में भगवान को प्रसन्न कर इहलोक तथा परलोक सुधारते हैं।

हिंदू धर्म में अधिकमास के दौरान सभी पवित्र कर्म वर्जित माने जाते हैं। अतिरिक्त होने के कारण इस मास को मलिन माना गया है। इस मास में विशिष्ट व्यक्तिगत संस्कार जैसे नामकरण, यज्ञोपवीत, विवाह, गृहप्रवेश, नई बहुमूल्य वस्तुओं की खरीदी आदि नहीं की जाती है। अधिकमास के अधिपति स्वामी भगवान विष्णु माने गए हैं। पुरुषोत्तम भगवान विष्णु का ही एक नाम है। इस कारण ही इसे पुरुषोत्तम मास के नाम से पुकारा जाता है।

ज्योतिषाचार्य पं. आत्मा राम पांडेय का कहना है कि वशिष्ठ सिद्धांत के अनुसार भारतीय हिंदू पंचांग सूर्य मास और चंद्र मास की गणना के अनुसार चलता है। अधिकमास चंद्र वर्ष का एक अतिरिक्त भाग है जो हर 32 माह, 16 दिन और 8 घटी के अंतर से आता है। इसका प्राकट्य सूर्य वर्ष और चंद्र वर्ष के बीच अंतर का संतुलन बनाने के लिए होता है।

भारतीय गणना पद्धति के अनुसार प्रत्येक सूर्य वर्ष 365 दिन और करीब 6 घंटे का होता है, वहीं चंद्र वर्ष 354 दिनों का माना जाता है। दोनों वर्षों के बीच लगभग 11 दिनों का अंतर होता है, जो हर तीन वर्ष में लगभग 1 मास के बराबर हो जाता है। इसी अंतर को पाटने के लिए हर तीन साल में एक चंद्र मास अस्तित्व में आता है, जिसे अतिरिक्त होने के कारण अधिक मास कहा जाता है।

पंच तत्वों में संतुलन भी बनता है
हिंदू धर्म के अनुसार प्रत्येक जीव पंचमहाभूतों से मिलकर बना है। इन पंचमहाभूतों में जल, अग्नि, आकाश, वायु और पृथ्वी शामिल हैं। अपनी प्रकृति के अनुरूप ही ये पांचों तत्व प्रत्येक जीव की प्रकृति न्यूनाधिक रूप से निश्चित करते हैं।

अधिकमास में समस्त धार्मिक कृत्यों, चिंतन- मनन, ध्यान, योग आदि से साधक इन पंचतत्वों में संतुलन स्थापित कर सकता है। इस पूरे मास में धार्मिक और आध्यात्मिक प्रयासों से व्यक्ति अपनी भौतिक और आध्यात्मिक उन्नति और निर्मलता हासिल करता है। अधिकमास में व्यक्ति नई ऊर्जा से भर जाता है। इस दौरान कुंडली के दोष भी दूर हो जाते हैं।
ज्योतिषाचार्य
पं.आत्मा राम पांडेय “काशी”
9838211412

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