निरोगी काया का वरदान देती हैं स्कन्दमाता, नवरात्रि के पांचवें दिन होती है इनकी पूजा

बस्ती। भारतीय पंचांग के अनुसार 21 अक्टूबर दिन बुधवार को नवरात्रि का पांचवा दिन है। इस दिन स्कंदमाता की पूजा होती है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जिन लोगों की जन्म कुंडली में बृहस्पति ग्रह कमजोर होता हैं वे यदि इस दिन स्कंदमाता की पूजा करते हैं तो वृहस्पति की अशुभता दूर होती है। बृहस्पति ग्रह मजबूत होता है, जो शिक्षा, उच्चपद और मान सम्मान का भी कारक है। इसके साथ ही माता निरोगी काया का भी वरदान देती हैं।
सुखी रहती हैं संतान
स्कन्दमाता माता का एक नाम पद्मासना देवी भी है। यह नाम इनकी गोद में कार्तिकेय के विराजमान होने से पड़ा है। इसलिए इनकी पूजा करने से कार्तिकेय की पूजा अपने आप हो जाती है। वंश आगे बढ़ता है और संतान संबधी सारे दुख दूर हो जाते हैं। घर-परिवार में हमेशा खुशहाली रहती है। कार्तिकेय की पूजा से मंगल भी मजबूत होता है। मां स्कंदमाता को सुख शांति की देवी माना गया है।
पूजा विधि
घर के मंदिर या पूजा स्थान में चौकी पर स्कंदमाता की तस्वीर या प्रतिमा स्थापित करें। गंगाजल से शुद्धिकरण करें फिर एक कलश में पानी लेकर उसमें कुछ सिक्के डालें और उसे चौकी पर रखें। अब पूजा का संकल्प लें। इसके बाद स्कंदमाता को रोली-कुमकुम लगाएं और नैवेद्य अर्पित करें। अब धूप-दीपक से मां की आरती उतारें और आरती के बाद घर के सभी लोगों को प्रसाद बांटें और आप भी ग्रहण करें। मां को केले या मौसमी फल का भोग लगाएं।
मां स्कंदमाता की कथा
ज्योतिषचार्य पंडित आत्माराम शास्त्री कहते हैं पौराणिक कथा के अनुसार तारकासुर नाम एक राक्षस ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या करने लगा। कठोर तप से ब्रह्मा जी प्रसन्न हुए और उसके सामने प्रकट हुए। ब्रह्मा जी ने वरदान मांगने को कहा। तारकासुर ने अमरता का वर मांगा। ब्रह्मा जी ने उसे समझाया कि इस धरती पर जिसने भी जन्म लिया है उसे मरना ही है। निराश होकर उसने ब्रह्मा जी कहा कि प्रभु ऐसा कर दें कि भगवान शिव के पुत्र द्वारा ही उसकी मृत्यु हो। तारकासुर की ऐसी धारणा थी कि भगवान शिव विवाह नहीं करेंगे।इसलिए उसकी मृत्यु नहीं होगी। ब्रह्मा जी ने उसे वरदान दिया और अदृश्य हो गए। इसके बाद उसने अत्याचार करना आरंभ कर दिया। तारकासुर के अत्याचारों से परेशान होकर सभी देवतागण भगवान शिव के पास पहुंचे और मुक्ति दिलाने की प्रार्थना की। तब शिव जी ने पार्वती जी से विवाह किया और कार्तिकेय के पिता बने। बड़े होने के बाद भगवान कार्तिकेय ने तारकासुर का वध किया। स्कंदमाता भगवान कार्तिकेय की माता हैं।
ध्यान:-
वन्दे वांछित कामार्थे चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा स्कन्दमाता यशस्वनीम्।।
धवलवर्णा विशुध्द चक्रस्थितों पंचम दुर्गा त्रिनेत्रम्।
अभय पद्म युग्म करां दक्षिण उरू पुत्रधराम् भजेम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानांलकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल धारिणीम्॥
प्रफुल्ल वंदना पल्ल्वांधरा कांत कपोला पीन पयोधराम्।
कमनीया लावण्या चारू त्रिवली नितम्बनीम्॥
स्तोत्र पाठ:-
नमामि स्कन्दमाता स्कन्दधारिणीम्।
समग्रतत्वसागररमपारपार गहराम्॥
शिवाप्रभा समुज्वलां स्फुच्छशागशेखराम्।
ललाटरत्नभास्करां जगत्प्रीन्तिभास्कराम्॥
महेन्द्रकश्यपार्चिता सनंतकुमाररसस्तुताम्।
सुरासुरेन्द्रवन्दिता यथार्थनिर्मलादभुताम्॥
अतर्क्यरोचिरूविजां विकार दोषवर्जिताम्।
मुमुक्षुभिर्विचिन्तता विशेषतत्वमुचिताम्॥
नानालंकार भूषितां मृगेन्द्रवाहनाग्रजाम्।
सुशुध्दतत्वतोषणां त्रिवेन्दमारभुषताम्॥
सुधार्मिकौपकारिणी सुरेन्द्रकौरिघातिनीम्।
शुभां पुष्पमालिनी सुकर्णकल्पशाखिनीम्॥
तमोन्धकारयामिनी शिवस्वभाव कामिनीम्।
सहस्त्र्सूर्यराजिका धनज्ज्योगकारिकाम्॥
सुशुध्द काल कन्दला सुभडवृन्दमजुल्लाम्।
प्रजायिनी प्रजावति नमामि मातरं सतीम्॥
स्वकर्मकारिणी गति हरिप्रयाच पार्वतीम्।
अनन्तशक्ति कान्तिदां यशोअर्थभुक्तिमुक्तिदाम्॥
पुनःपुनर्जगद्वितां नमाम्यहं सुरार्चिताम्।
जयेश्वरि त्रिलोचने प्रसीद देवीपाहिमाम्॥
मां स्कंदमाता के मंत्र:-
सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया.
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥
ॐ देवी स्कन्दमातायै नमः॥
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