होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति से एचआईवी संक्रमण के प्रभाव को कम करना सम्भव : डॉ दीपक सिंह

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होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति से एचआईवी संक्रमण के प्रभाव को कम करना सम्भव : डॉ दीपक सिंह

गायघाट, बस्ती। आमतौर पर एड्स नामक बीमारी को लेकर समाज का नजरिया बेहद नकरात्मक होता है। आप को यह जानकर बेहद हैरानी होगी कि अधिकांस एड्स मरीज इन्ही सब कारणों से मानसिक अवसाद के शिकार हो जाते हैं। यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के मुताबिक पूरी दुनिया मे 36.9 मिलियन लोग एड्स के शिकार हैं। वहीँ भारत मे तकरीबन 16 लाख लोग एड्स के शिकार हैं। डब्लू एच ओ से जुड़े जेम्स डब्लू बुन और थॉमस ने सन 1987 में एड्स के बारे में डब्लू एच ओ को बताया था। कहा तो ये भी जाता है कि एड्स के वायरस सबसे पहले साउथ अफ्रीका में एक विशेष प्रजाति के बन्दर में देखा गया था। पूरी दुनिया मे आज भी एड्स के सबसे ज्यादा मरीज साउथ अफ्रीका में हैं। वही भारत मे एड्स मरीजो की संख्या दूसरे स्थान पर है। एचआईवी अर्थात ह्यूमन इम्युनो डिफीसियनसी वायरस के इन्फ़ेक्सन के कारण एड्स नामक बीमारी होती है।

होम्योपैथी चिकित्सा विकास महासंघ के राष्ट्रीय सचिव एवं आरोग्य भारती के प्रांतीय उपाध्यक्ष डॉ दीपक सिंह कहते हैं कि एच आई वी के लक्षण 2 से 6 सप्ताह में दिखने लगते हैं। वहीं एचआइवी संक्रमण को एड्स तक पहुचने में 8 से 10 बर्ष तक लग जाते हैं। एचआईवी संक्रमण के कारण इम्यून सिस्टम अर्थात रोग प्रतिरोधक क्षमता बिगड़ने लगती है। प्रारम्भिक लक्षण सरदर्द, तेज बुखार, स्किन पर धब्बे, सर्दी जुखाम, लीवर की गड़बड़ी, उल्टी, पेट दर्द, शरीर मे दर्द आदि हो सकते हैैं। इम्यून सिस्टम कमजोर होने की वजह सें दवाइयों का असर मरीज में नही हो पाता है। सन 1988 से अब तक पूरी दुनिया मे 30 करोड़ लोगों की मौत एड्स नामक महामारी से हुई है। तमाम होम्योपैथिक विशेषज्ञों द्वारा होम्योपैथी विधा से इसके उपचार हेतु शोध कार्य किए गए हैं। जिसके सकारात्मक परिणाम देखे गए हैं।

डॉ दीपक सिंह का मानना है कि होम्योपैथी लक्षणो पर आधारित चिकित्सा पद्धति है। यदि समय से एचआईवी ग्रसित मरीजो की पहचान कर ली जाए तो होम्योपैथिक उपचार से एड्स पीड़ित मरीजों को बचाया जा सकता है। बेसिलीनम, सिफिलीनम, टूबरकुलीनम, आर्सेनिक, कालीआयोड, कालीकार्ब, इंफ्लुएंजमज सहित कई होम्योपैथिक औषधियां हैं जिनसे एचआईवी संक्रमण के प्रभाव को कम कर सकते हैं।

असुरक्षित योनि सम्बन्ध एड्स का सबसे प्रमुख कारण है। इसके अलावा दूषित सिरिंज, साफ सफाई का न होना, किसिंग आदि तमाम कारण हो सकते हैं। इसके बचाव हेतु कन्डोम का प्रयोग एवं जनजागरूकता कार्यक्रम सबसे बड़ा हथियार साबित हुआ है। वहीं एड्स के प्रति समाज को अपनी सोच में बदलाव लाने की आवश्यकता है।

आमतौर पर देखा जाता है कि एड्स मरीजो से समाज कट जाता है। लोग अपने रिस्ते नाते सब खत्म कर लेते हैं। जिसके चलते एचआईवी ग्रसित मरीज बर्षो बर्षो तक अपने बीमारी को छुपाए रहता है उसके अंदर हीनता की भावना आ जाती है। आखिर कार वह मानसिक अवसाद का शिकार हो जाता है जिसके चलते उसकी इम्यून सिस्टम और तेजी से कमजोर होने लगती है अंततः उसकी मौत समय से पहले हो जाती है।

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