शादी में देरी या बार-बार रिश्ते होकर टूटने में फलदायी होती है मां कात्यायनी की आराधना

नवरात्रि के छठवें दिन होती है मां कात्यायनी की पूजा
बस्ती। शारदीय नवरात्रि के छठें दिन यानी 22 अक्टूबर को मां कात्यायनी की पूजा होगी। कहा जाता है कात्यायनी आदिशक्ति श्री दुर्गा का छठवां रूप हैं और उनके पूजन से सभी संकटों का नाश हो जाता है। यही नहीं, शादी में हो रही देरी या बार-बार रिश्ते होकर टूटने जैसे दिक्कतों में भी कात्यायनी पूजा फलदायी होती है। विवाह बाधा दूर करने के अलावा रोग व भय का भी निवारण करती हैं।
मां कात्यायनी को प्रसन्न करना कठिन नहीं है। सच्चे मन से पूजा अर्चना करते हैं तो वे आप हर कष्ट को दूर करेंगी। मान्यता है कि देवी कात्यायनी की पूजा से घर में सुख शान्ति आती है। विवाह के बाद की समस्याएं और पति-पत्नी के रिश्ते में आ रही परेशानियां इनकी उपासना व व्रत से दूर होती हैं। इनका वर्ण स्वर्ण के समान चमकीला है। इनकी चार भुजायें हैं, इनका दाहिना ऊपर का हाथ अभय मुद्रा में है, नीचे का हाथ वरदमुद्रा में है। बांये ऊपर वाले हाथ में तलवार और निचले हाथ में कमल का फूल है और इनका वाहन सिंह है। आज के दिन साधक का मन आज्ञाचक्र में स्थित होता है। योगसाधना में आज्ञाचक्र का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इस चक्र में स्थित साधक कात्यायनी के चरणों में अपना सर्वस्व अर्पित कर देता है। पूर्ण आत्मदान करने से साधक को सहजरूप से माँ के दर्शन हो जाते हैं। मां कात्यायनी की भक्ति से मनुष्य को अर्थ, कर्म, काम, मोक्ष की भी प्राप्ति होती है। संस्कृत शब्दकोश में उमा, कात्यायनी, गौरी, काली, हेमावती, इस्वरी इन्हीं के अन्य नाम हैं। शक्तिवाद में उन्हें शक्ति या दुर्गा, जिसमें भद्रकाली और चंडिका भी कहा जाता है।
मां कात्यायनी की पौराणिक कथा
ज्योतिषचार्य पंडित आत्माराम पांडेय कहते हैं, एक समय कत नाम के प्रसिद्ध ऋषि थे। उनके पुत्र ऋषि कात्य हुए, उन्हीं के नाम से प्रसिद्ध कात्य गोत्र से, विश्वप्रसिद्ध ऋषि कात्यायन उत्पन्न हुए। उन्होंने भगवती पराम्बरा की उपासना करते हुए कठिन तपस्या की। उनकी इच्छा थी कि भगवती उनके घर में पुत्री के रूप में जन्म लें। माता ने उनकी यह प्रार्थना स्वीकार कर ली। कुछ समय के पश्चात जब महिषासुर नामक राक्षस का अत्याचार बहुत बढ़ गया था, तब उसका विनाश करने के लिए ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने अपने अपने तेज़ और प्रताप का अंश देकर देवी को उत्पन्न किया था। महर्षि कात्यायन ने इनकी पूजा की इसी कारण से यह देवी कात्यायनी कहलायीं। अश्विन कृष्ण चतुर्दशी को जन्म लेने के बाद शुक्ल सप्तमी, अष्टमी और नवमी, तीन दिनों तक कात्यायन ऋषि ने इनकी पूजा की, पूजा ग्रहण कर दशमी को इस देवी ने महिषासुर का वध किया। इन का स्वरूप अत्यन्त ही दिव्य है।
मां कात्यायनी को पसंद है शहद
मां कात्यायनी ने देवताओं की प्रार्थना सुनकर महिषासुर से युद्ध किया। महिसासुर से युद्ध करते हुए मां जब थक गई तब उन्होंने शहद युक्त पान खाया। शहद युक्त पान खाने से मां कात्यायनी की थकान दूर हो गयी और महिषासुर का वध कर दिया। कात्यायनी की साधना एवं भक्ति करने वालों को मां की प्रसन्नता के लिए शहद युक्त पान अर्पित करना चाहिए।
पूजा विधि
सुबह नहाने के पानी में थोड़ा गंगाजल डालकर स्नान करें और फिर मां कात्यायनी का मन में ध्यान करते रहें। उसके पश्चात् नारियल को कलश पर रखें। फिर उस पर चुन्नी व कलावा लगायें और पूजा करें। फिर मां कात्यानी को रोली, हल्दी व चावल का तिलक करें। तिलक लगाने के बाद मां कात्यानी के सामने घी का दिया जलाएं। मां कात्यानी को शहद अत्यंत प्रिय होता है इसलिए उन्हें शहद का भोग लगाने चाहिए। लाल रंग के वस्त्र पहनें। यह रंग शक्ति का प्रतीक होता है और यह मां कात्यायनी का प्रिय रंग भी माना जाता है।
गोधूलि काल में भी होती है पूजा
मां कात्यायनी की साधना का समय गोधूली काल में भी होती है। मान्यता है कि इस समय में धूप, दीप, गुग्गुल से मां की पूजा करने से सभी प्रकार की बाधाएं दूर होती है। जो भक्त माता को पांच तरह की मिठाईयों का भोग लगाकर कुंवारी कन्याओं में प्रसाद बांटते हैं। माता उनकी आय में आने वाली बाधा को दूर करती हैं और व्यक्ति अपनी मेहनत और योग्यता के अनुसार धन अर्जित करने में सफल होता है।
पूजन सामग्री व मंत्र
नारियल, कलश, गंगाजल, कलावा, रोली, चावल, चुन्नी, शहद, अगरबत्ती, धूप, दीया और घी। साथ ही मां कात्यायनी को प्रसन्न करने के लिए 3 से 4 पुष्प लेकर निम्न मंत्र का जाप 108 बार करना चाहिए, उसके बाद उन्हें पुष्प अर्पित करना चाहिए
चंद्र हासोज्ज वलकरा शार्दू लवर वाहना ।
कात्यायनी शुभं दघा देवी दानव घातिनि ।।
या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
विवाह के लिये कात्यायनी मन्त्र
ॐ कात्यायनी महामाये महायोगिन्यधीश्वरि।
नंदगोपसुतम् देवि पतिम् मे कुरुते नम:।।
ध्यान
वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा कात्यायनी यशस्वनीम्॥
स्वर्णाआज्ञा चक्र स्थितां षष्टम दुर्गा त्रिनेत्राम्।
वराभीत करां षगपदधरां कात्यायनसुतां भजामि॥
पटाम्बर परिधानां स्मेरमुखी नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रसन्नवदना पञ्वाधरां कांतकपोला तुंग कुचाम्।
कमनीयां लावण्यां त्रिवलीविभूषित निम्न नाभिम॥
स्तोत्र पाठ
कंचनाभा वराभयं पद्मधरा मुकटोज्जवलां।
स्मेरमुखीं शिवपत्नी कात्यायनेसुते नमोअस्तुते॥
पटाम्बर परिधानां नानालंकार भूषितां।
सिंहस्थितां पदमहस्तां कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥
परमांवदमयी देवि परब्रह्म परमात्मा।
परमशक्ति, परमभक्ति,कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥
कवच
कात्यायनी मुखं पातु कां स्वाहास्वरूपिणी।
ललाटे विजया पातु मालिनी नित्य सुन्दरी॥
कल्याणी हृदयं पातु जया भगमालिनी॥
बीज मंत्र
ॐ ह्रीं क्लीं कात्यायने नमः
मंत्र जप में इन बातों का ध्यान रखें
– नो दिनों तक एक ही समय पर ही मंत्र का जप करें ।
– पहले दिन जितनी माला का जप किया है, बाकी दिनों में भी उतनी ही माला का जप करना हैं ।
– मंत्र का जप मन ही मन करें ।
– एक ही समय घर का बना बिना लहसन, प्याज का भोजन करें ।
– संभव हो तो नवरात्रि में भूमि पर शयन करें ।
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