लॉकडाउन: गेंदे की खेती से बेटी के हाथ पीले करने के सपनों पर फिरा पानी

◆फूलों की महक हुई कम तो टूटनें लगी किसान की उम्मीद
गायघाट, बस्ती। समूचा देश कोरोना वायरस के संक्रमण से जूझ रहा है। जिसके कारण देश को पूरी तरह से लॉकडाउन कर दिया गया है। लॉकडाउन के चलते फूलों की खेती करने वाले किसानों की भी कमर टूट गई है। फूलों की मांग न होने से लाखों रुपए का फूल खेतों में ही सूखकर बर्बाद हो रहा है। तमाम सपनों को अपने जेहन में संजोये किसान इस उम्मीद से फूलों की खेती शुरू किया कि इस साल अच्छी फसल होने पर बेटी के हाथ पीले करनें के साथ ही कर्ज लिए रुपए भी चुकता हो जाएंगे। किन्तु लॉकडाउन नें किसान के अरमानों पर पानी फेर दिया है।
कोराना वायरस से उत्पन्न वैश्विक महामरी के चलते लॉकडाउन से मंदिर, मस्जिद के साथ ही सभी धार्मिक स्थल बंद है। बात करें तो शादी विवाह पर भी पूरी तरह रोक लगी हुई है। ऐसे में इसका सीधा असर फूलों की खेती करने वाले किसानों पर पड़ा है। मांग न होने से सजावट में इस्तेमाल होने वाले यह फूल खेतों में ही सूखकर बर्बाद हो रहे हैं। फूलों की खेती करनें वालों की मानें तो यह माह फूलों के व्यापार के लिए मुख्य समय रहता है। किसान पूरा साल इस सीजन के इंतजार में रहते हैं। किन्तु इस साल लॉकडाउन के कारण अब तो सारे ऑर्डर भी रद्द होनें लगे हैं।
ऐसी ही कुछ कहानी है कुदरहा विकास क्षेत्र के गायघाट निवासी शाह मोहम्मद कुरैशी की। शाह मोहम्मद नें चार हजार रुपये में लीज पर दो बीघा खेत लेकर पहली बार पारम्परिक खेती से अलग हटकर गेंदा के फूल की खेती शुरू किया। शाह मोहम्मद नें बताया कि दो बीघा खेत में गेंदा के फूल का पौधा लगाया था। खाद बीज और सिंचाई की अनुमानित लागत करीब चालीस हजार रूपए आई है। नवरात्र में फूल आना शुरू हो गया था। किन्तु लाकडाउन के कारण फूल की बिक्री नहीं हो सका। खेत में फूल की बिक्री 80 से 100 रूपए प्रति किलो और बस्ती शहर में करीब दो सौ रुपए प्रति किलो व्यापारी करते थे। करीब दो लाख रुपए आमदनी का अनुमान था। सोचा था फूल की बिक्री से हुई आमदनी से बेटी के हाथ पीले करूंगा। लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। अब तो पेड़ भी सूखने के कगार पर है। अब सारे सपनें पर लॉकडाउन के चलते पानी फिर गया।
About The Author
◆फूलों की महक हुई कम तो टूटनें लगी किसान की उम्मीद गायघाट, बस्ती। समूचा देश…