मां कुष्मांडा को लाल है प्रिय, भक्तों के सभी दुखों का करती हैं निवारण

– शारदीय नवरात्रि के चौथे दिन होती है मां कुष्मांडा की पूजा
– समस्त दुखों व विपदाओं का नाश करती हैं माता कुष्मांडा
बस्ती। शारदीय नवरात्रि के चौथे दिन मां कुष्मांडा की आराधना होती है। इस बार नवरात्रि का चौथा दिन मंगलवार को पड़ रहा है। मां कूष्मांडा को गुड़हल का फूल या लाल रंग का फूल अत्यधिक प्रिय है। इसलिए मां की पूजा में गुड़हल का फूल अर्पित करना सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करता है। इससे मां कूष्मांडा जल्द प्रसन्न होती हैं। मां दुर्गा ने असुरों का संहार करने के लिए कूष्मांडा देवी स्वरूप धारण किया था। मां कूष्मांडा की आठ भुजाएं हैं, उनकी पूजा करने से व्यक्ति के समस्त कष्टों, दुखों और विपदाओं का नाश होता है। आइए जानते हैं नवरात्रि के चौथे दिन मां कूष्मांडा की पूजा विधि, मंत्र के बारे में…
मां कुष्मांडा का प्रार्थना
सुरासम्पूर्ण कलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥
स्तुति
या देवी सर्वभूतेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
मंत्र
सर्व स्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्ति समन्विते।
भयेभ्य्स्त्राहि नो देवि कूष्माण्डेति मनोस्तुते।।
ओम देवी कूष्माण्डायै नमः॥
मां कूष्मांडा बीज मंत्र
ऐं ह्री देव्यै नम:।
मां कूष्मांडा को दी जाती है कुम्हड़े की बलि
संस्कृत में कुम्हड़े को कूष्मांडा कहा जाता है। इसी से देवी का नाम कूष्मांडा पड़ा। देवी को कुम्हड़े की बलि दी जाती है। आठ भुजाओं के कारण मां को अष्टभुजा भी कहा जाता है। ये अपनी भुजाओं में कमल, कमंडल, अमृत कलश, धनुष, बाण, चक्र और गदा धारण करती हैं। वहीं, एक भुजा में माला धारण करती हैं और सिंह की सवारी करती हैं।
पूजा का महत्व
जो व्यक्ति अनेक दुखों, विपदाओं और कष्टों से गिरा रहता है, उसे मां कूष्मांडा की पूजा-अर्चना करनी चाहिए। उनके आशीर्वाद से सभी कष्ट और दुख मिट जाते हैं।
पूजा विधि
सुबह स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं। इसके बाद मां कूष्मांडा का स्मरण करके उनको धूप, गंध, अक्षत्, लाल पुष्प, सफेद कुम्हड़ा, फल, सूखे मेवे और सौभाग्य का सामान अर्पित करें। अब मां कूष्मांडा को हलवा और दही का भोग लगाएं। फिर उसे प्रसाद स्वरूप ग्रहण कर सकते हैं। पूजा के अंत में मां कूष्मांडा की आरती करें और अपनी मनोकामना उनसे व्यक्त कर दें।
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