जयन्ती पर याद किये गये प्रथम राष्ट्रपति डा.राजेन्द्र प्रसाद सरल जीवन, ऊँचे विचार के उदाहरण थे राजेन्द्र बाबू- अजय
बस्ती । स्वाधीन भारत के प्रथम राष्ट्रपति डा.राजेन्द्र प्रसाद को उनकी 136 वीं जयंती पर याद किया गया। गुरूवार को कायस्थ सेवा ट्रस्ट के संस्थापक अजय कुमार श्रीवास्तव के संयोजन में चित्रगुप्त मंदिर परिसर में डा.राजेन्द्र बाबू को नमन् करते हुये उनके योगदान पर चर्चा की गई।
अजय कुमार श्रीवास्तव ने कहा कि राजेंद्र बाबू भारतीय संस्कृति और सामान्य जनता के प्रतिनिधि थे, इसलिए वे सबके प्यारे थे। वे सरल जीवन और ऊँचे विचार के जीते जागते उदाहरण थे उन्होंने जीवन भर भारतीय पोशाक पहनी, विदेशी वस्त्र कभी नहीं पहना।सादगी और सचाई के वे अवतार थे। उनका अंदर और बाहर का जीवन एक समान था। वे गाँधीजी के अनुयायियों में प्रथम थे। ट्रस्ट अध्यक्ष सर्वेश श्रीवास्तव ने कहा कि महापुरुषों का जन्म अपने लिए नहीं हुआ करता। वे तो किसी बड़े काम को पूरा करके ही दम लेते है। सन् 1917 में जब गाँधीजी ने चंपारण में अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठायी तभी राजेंद्र बाबू की भेंट गाँधीजी से हुई और वे बापूके शिष्य हो गये। उन्होंने चलती वकालत को छोड़ देश सेवा का व्रत लिया और आजीवन उसका निर्वहन किया।
सामाजिक कार्यकर्ता दुर्गेश श्रीवास्तव ने कहा कि राजेंद्र प्रसादजी का जन्म 3 दिसम्बर 1884 ई० को सारण जिले के जीरादेई नामक गाँव में हुआ था। उनके बड़े भाई श्री महेंद्र प्रसाद ने अपने छोटे भाई राजेंद्र प्रसाद का लालन-पालन किया था और ऊँची शिक्षा पाने में उनकी मदद की थी। राजेंद्र बाबू ने पटना के टी० के० घोष एकेडमी में शिक्षा पाकर कलकत्ता विश्वविद्यालय से सन् 1900 में प्रथम श्रेणी में इंट्रेन्स परीक्षा पास की। इस परीक्षा में उन्हें सबसे अधिक अंक मिले। सारे देश में उनकी प्रशंसा हुई। जयन्ती अवसर पर देश के प्रथम राष्ट्रपति डा.राजेन्द्र प्रसाद को नमन करने वालों में बापू प्रतिमा के समक्ष मुख्य रूप से दुगेन्द्र श्रीवास्तव, विवेक श्रीवास्तव, आलोक श्रीवास्तव, आशीष श्रीवास्तव, राहुल श्रीवास्तव आदि शामिल रहे।
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