आस्था का महापर्व छठ: डूबते सूर्य को अर्ध्य देकर की सुख समृद्धि की कामना, 21 नवंबर को होगा समापन

– संतान की सुख समृद्धि, दीर्घायु की कामना के लिए मनाया जाने वाला छठ पूजा बिहार और झारखंड के निवासियों का प्रमुख त्योहार लेकिन इसका उत्सव पूरे उत्तर भारत में देखने को मिलता है
– कुआनो, सरयू नदी में महिलाओं ने डूबते सूर्य को दिया अर्ध्य, कोरोना के चलते अधिकांश महिलाओं ने घर पर ही की छठ पूजा
बस्ती। 18 नवंबर से नहाय खाय के साथ शुरू हुए आस्था के महापर्व छठ के मौके पर शुक्रवार को व्रती महिलाओं ने डूबते सूर्य को अर्ध्य देकर संतान सुख व समृद्धि की कामना की। सरयू, कुआनो समेत अन्य नदियों पर महिलाओं की भीड़ देखने को मिली, लेकिन कोरोना के चलते अधिकांश महिलाओं ने घर पर ही पूजा की।
संतान की सुख समृद्धि, दीर्घायु की कामना के लिए मनाया जाने वाला छठ पूजा बिहार और झारखंड के निवासियों का प्रमुख त्योहार है, लेकिन इसका उत्सव पूरे उत्तर भारत में देखने को मिलता है। छठव्रती नदी और तालाब के घाटों पर ढलते और उगते सूर्य को अर्ध्य देती हैं। आस्था का महापर्व छठ पूजा हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। इस बार षष्ठी तिथि 20 नवंबर 2020, शुक्रवार को है। सूर्य उपासना के इस पर्व को प्रकृति प्रेम और प्रकृति पूजा का सबसे उदाहरण भी माना जाता है। लेकिन इस बार कोरोना महामारी का प्रकोप होने के चलते कई सार्वजनिक कार्यक्रमों में पाबंदियां लगी हुई हैं। इसके बावजूद भी लोगों का उत्साह और आस्था कम होती नहीं दिख रही।
क्षेत्र के कलवारी, नौरहनी घाट, ईजरगढ़, धरमूपुर, पण्डूल घाट, मसहा, विशेषरगंज, अमोढा, बभनान, हरैया सहित इलाके में मनाया गया।
खरना के बाद 36 घंटे का उपवास
नहाय खाय के बाद दूसरे दिन खरना के साथ उपवास शुरू होता है। खरना के दिन शाम को व्रती सात्विक आहार जैसे- गुड़ की खीर का सेवन करती हैं और इसके बाद 36 घंटे का निर्जला उपवास शुरू होता है। तीसरे दिन छठव्रती डूबते सूर्य को अर्घ्य देती हैं और फिर चौथे दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ इस पर्व का समापन होता है। इस बार 19 नवंबर को खरना है, जिसके बाद 20 नवंबर को डूबते सूर्य को अर्घ्य और 21 नवंबर को उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा।
छठ की तिथियां कुछ इस प्रकार हैं-
18 नवंबर 2020, बुधवार- चतुर्थी (नहाय-खाय)
19 नवंबर 2020, गुरुवार- पंचमी (खरना)
20 नवंबर 2020, शुक्रवार- षष्ठी (डूबते सूर्य को अर्घ)
21 नवंबर 2020, शनिवार- सप्तमी (उगते सूर्य को अर्घ)
छठ पूजा से जुड़ी कुछ खास बातें
1. यह त्योहार सूर्य देवता को धन्यवाद के रूप में मनाया जाता है।
2. छठ के दौरान व्रत रखने वाले भक्त को व्रती कहा जाता है. भक्त इन चार दिनों तक उपवास रखते है।
3. छठ में सूर्योदय और सूर्यास्त के दौरान नदी तट पर प्रार्थना के इक्कठा होते हैं।
4. पहला दिन – नहाय खाय – पवित्र गंगा में डुबकी लगाकर या गंगाजल (पवित्र जल) छिड़ककर और सूर्य भगवान की पूजा करके शुरू किया जाता है जिसके बाद चना दाल के साथ कद्दू की सब्जी और चावल तैयार करके खाया जाता है।
5. पहले दिन, भक्त सुबह के भोजन के अलावा, अगले दिन की शाम खरना तक भोजन करते हैं, जहां वे खीर, चपातियां और फल खाते हैं. दूसरे दिन को लोहंड के नाम से भी जाना जाता है।
6. तीसरे दिन को पहला अर्घ या सांध्य अर्घ्य कहा जाता है। व्रत रखने वाले लोग इस दिन कुछ भी खाने से पूरी तरह परहेज करते हैं। डूबते सूरज की पूजा की जाती है और शाम को अर्घ दिया जाता है।
7. अंतिम दिन – दूसरा अर्घ या सूर्योदय अर्घ होता है- इस दिन सुबह सूर्योदय के समय सूर्य को अर्घ देते पूजा करते है और अपना व्रत खोलते हैं और इसके बाद भक्त खीर, मिठाई, ठेकुआ और फल सहित छठ प्रसाद का सेवन करते हैं।
8. चावल, गेहूं, ताजे फल, सूखे मेवे, नारियल, मेवे, गुड़ और घी में छठ पूजा के प्रसाद के साथ-साथ पारंपरिक छठ भोजन बनाया जाता है।
9. छठ के दौरान बनने वाला भोजन – विशेष रूप से छठ पूजा का प्रसाद – प्याज, लहसुन और नमक के बिना तैयार किया जाता है।
10. यह त्योहार नई फसल के उत्सव का भी प्रतीक है. सूर्यदेव को दिए जाने प्रसाद में फल के अलावा इस नई फसल से भोजन तैयार किया जाता है।
इस तरह की जाती है छठ पूजा
छठ पूजा की शुरुआत षष्ठी तिथि से दो दिन पूर्व चतुर्थी से हो जाती है। चतुर्थी तिथि को नहाय-खाय होता है और इस दिन लोग घर की साफ-सफाई, पवित्र करके पूरे दिन सात्विक आहार लेते हैं। इसके बाद पंचमी तिथि को खरना शुरू होता है, जिसमें व्रती को दिन में व्रत करके शाम को सात्विक आहार जैसे- गुड़ की खीर, कद्दू की खीर आदि लेना होता है। छठ पूजा के दिन षष्ठी को व्रती को निर्जला व्रत रखना होता है। यह व्रत खरना के दिन शाम से शुरू होता है। छठ यानी षष्ठी तिथि के दिन शाम को डूबते सूर्य को अर्घ्य देकर अगले दिन सप्तमी को सुबह उगते सूर्य का इंतजार करना होता है। सप्तमी को उगते सूर्य को अर्घ देने के साथ ही करीब 36 घंटे चलने वाला निर्जला व्रत समाप्त होता है।।छठ पूजा का व्रत करने वालों का मानना है कि पूरी श्रद्धा के साथ छठी मइया की पूजा-उपासना करने वालों की मनोकामना पूरी होती है।
महाभारत काल से हुई थी छठ की शुरुआत
छठ व्रत से जुड़ी अनेक मान्यताएं हैं। नहाय-खाय से शुरू होने वाले छठ पर्व के बारे में कहा जाता है कि इसकी शुरुआत महाभारत काल से ही हो गई थी। एक कथा के अनुसार महाभारत काल में जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए थे तब द्रौपदी ने इस चार दिनों के व्रत को किया था। इस पर्व पर भगवान सूर्य की उपासना की थी और मनोकामना में अपना राजपाट वापस मांगा था। इसके साथ ही एक और मान्यता प्रचलित है कि इस छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल में कर्ण ने की थी। कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे और वे पानी में घंटों खड़े रहकर सूर्य की उपासना किया करते थे, जिससे प्रसन्न होकर भगवान सूर्य ने उन्हें महान योद्धा बनने का आशीर्वाद दिया था। एक मान्यता के अनुसार भगवान राम और माता सीता ने रावण वध के बाद कार्तिक शुक्ल षष्ठी को उपवास रखा और सूर्यदेव की पूजा आराधना की और सप्तमी को उगते सूर्य की पूजा की आशीर्वाद प्राप्त किया। कहा जाता है तभी से छठ मनाने की ये परंपरा चली आ रही है। इस मान्यता के अनुसार छठ देवी सूर्य देव की बहन हैं और उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए भगवान सूर्य की पूजा की जाती है। व्रत करने वाले मां गंगा और यमुना या किसी नदी या जलाशयों के किनारे आराधना करते हैं। इस पर्व में स्वच्छता और शुद्धता का सबसे जाय्दा ख्याल रखा जाता है।
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